As mentioned before, Nārada reached the cottage of Kṛṣṇa-dvaipāyana Vyāsa on the banks of the Sarasvatī just as Vyāsadeva was regretting his defects. ।। १-४-३२ ।।
english translation
जैसा कि पहले कहा जा चुका है, जब व्यासदेव अपने दोषों के विषय में पश्चात्ताप कर रहे थे, उसी समय सरस्वती नदी के तट पर स्थित कृष्णद्वैपायन व्यास की कुटिया में नारद जी पधारे। ।। १-४-३२ ।।