1.
प्रथम अध्याय
prathama adhyAya
2.
द्वितीय अध्याय
dvitIya adhyAya
3.
तृतीय अध्याय
tRtIya adhyAya
4.
चतुर्थः अध्यायः
caturthaH adhyAyaH
5.
पंचम अध्याय
paMcama adhyAya
6.
षष्ठम् अध्याय
SaSTham adhyAya
7.
सप्तम अध्याय
saptama adhyAya
8.
अष्टम अध्याय
aSTama adhyAya
9.
नवम अध्याय
navama adhyAya
10.
दशम अध्याय
dazama adhyAya
11.
एकादश अध्याय
ekAdaza adhyAya
12.
द्वादश अध्याय
dvAdaza adhyAya
13.
त्रयोदश अध्याय
trayodaza adhyAya
14.
चतुर्दश अध्याय
caturdaza adhyAya
•
पञ्चदश
paJcadaza
16.
षोडश अध्याय
SoDaza adhyAya
17.
सप्तदश अध्याय
saptadaza adhyAya
पीतः क्रुद्धेन तातश्चरणतलहतो वल्लभो येन रोषाद् आबाल्याद्विप्रवर्यैः स्ववदनविवरे धार्यते वैरिणी मे । गेहं मे छेदयन्ति पर्तिदिवसमुमाकान्तपूजानिमित्तं तस्मात्खिन्ना सदाहं द्विजकुलनिलयं नाथ युक्तं त्यजामि ॥१६॥
लक्ष्मी माता भगवान विष्णु से कहती हैं - जिसने (ऋषि अगस्त) रुष्ट होकर मेरे पिता समुद्र (लक्ष्मीजी समुद्र से उत्पन्न हुईं थीं) को पी डाला और जिसने (ऋषि भृगु क्रोध में भर कर मेरे पति (भगवान विष्णु) के लात मारी और जो ब्राह्मण सदा लड़कपन से मेरी स्पर्धक सरस्वती की कृपा चाहते हैं तथा प्रतिदिन पार्वती के पति (भगवान शिव) की पूजा के निमित्त मेरे गृह कमलपुष को तोड़ते हैं। हे नाथ! इससे खिन्न होकर मैं उन ब्राह्मणों के घर में कभी निवास नहीं करती I
english translation
पीतः क्रुद्धेन तातश्चरणतलहतो वल्लभो येन रोषाद् आबाल्याद्विप्रवर्यैः स्ववदनविवरे धार्यते वैरिणी मे । गेहं मे छेदयन्ति पर्तिदिवसमुमाकान्तपूजानिमित्तं तस्मात्खिन्ना सदाहं द्विजकुलनिलयं नाथ युक्तं त्यजामि ॥१६॥
hindi translation
pItaH kruddhena tAtazcaraNatalahato vallabho yena roSAd AbAlyAdvipravaryaiH svavadanavivare dhAryate vairiNI me | gehaM me chedayanti partidivasamumAkAntapUjAnimittaM tasmAtkhinnA sadAhaM dvijakulanilayaM nAtha yuktaM tyajAmi ||16||
hk transliteration by Sanscript